एक खोज
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जब निकले थे हम उजालो की खोज मैं; थम से गए थे जैसे सारे नज़ारे।
नाचती थिरकती रंगीन रोशनियों से जैसे भरा हुआ था सारा संसार।
दूर दूर तक देखो तो हर जगह थी एक तिम्टती लेहर .
हर एक पहेलु जैसे हमसे कुछ कह रहा;वोह राज़ जो रात की स्याही ने किये थे उसे बयान .
कुछ सुनी कुछ अनसुनी बातों का था वोह सिलसिला जो चला कई रातो तक।
उस रौशनी की लहर ने थी एक राह सींची ; ज़मीन से लेकर आसमान तक।
जिस रहा की न कोई सीमाए थी न हद्दे .....बस चलते जाना है।
दूर कही एक उजाले की तिमिर है जिसकी खोज मैं आगे बढ़ते जाना है।